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Zakir Husain Centre for Educational Studies
Zakir Husain Centre for Educational Studies
Zakir Husain Centre for Educational Studies
Zakir Husain Centre for Educational Studies

sss/hindi-zhces

ज़ाकिर हुसैन शैक्षिक अध्ययन केंद्र  

विद्यालय में शैक्षिक अद्ययन के लिए ज़ाकिर हुसैन केंद्र 1972 में अस्तित्व में आया। शिक्षा आयोग (1964-66) तथा जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय के कार्य समूह द्वारा इसकी शैक्षिक अध्ययन में उन्नत शिक्षण तथा शोध के लिए एक अभिनव प्रयोग के रूप में कल्पना की गयी थी। शैक्षिक अध्ययन के लिए ज़ाकिर हुसैन केंद्र की उत्पत्ति के अंतर्निहित धारणा का शिक्षा आयोग (1964-66) के दो अवलोकनों द्वारा पता लगाया जा सकता है।

देश में शैक्षणिक शोध की गुणवत्ता को सुधारा जाना अनिवार्य है, तथा इसे केवल तभी सुधार जा सकता है, यदि इसे शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालयों के भौतिक परिसर से बाहर रखा जाये। शैक्षिक अध्ययन केंद्र का कार्यकारिणी समूह, प्रस्थान के एक बिंदु को चिन्हित करता है, जिसमें केंद्र को लोगो के दल के रूप में उल्लेखित करता है “वह लोग जो प्राथमिकता के साथ विभिन्न विषयों से संबंधित हो, अपने स्वयं के क्षेत्रों में मूल योग्यता का उच्च स्तर रखते हों, तथा जो शैक्षिक समस्याओं में रूचि प्रकट करतें हो”। इसने विशेष रूप से सामाजिक विज्ञान के लिए स्थान बना दिया, जबकि अन्य को शैक्षिक अध्ययन में शिक्षण तथा शोध के सामूहिक बहुविषयक कार्यक्रमों को व्यवस्थित करने तथा उनमें भाग लेने के द्वारा, शैक्षिक शोध की गुणवत्ता को सुधारने की चुनौती स्वीकार्य करने के लिए खारिज नहीं किया। कार्यकारिणी दल ने, डॉक्टरेट कार्यक्रम शुरू करने से पहले कोर संकाय द्वारा तैयारी की आवश्यकताओं को रेखांकित किया।

केंद्र के प्राथमिकता क्षेत्र की उच्च शिक्षा सेक्टर के रूप में पहचान की गयी थी, क्योंकि इसका प्राथमिक तथा माध्यमिक शिक्षा के सेक्टरों के साथ भी गहरा पारस्परिक प्रभाव था। यह उम्मीद थी कि केंद्र, शिक्षक प्रशिक्षण विभाग में किये जा रहे कार्य को दोहराये जाये बिना, सामाजिक विज्ञान के तहत शैक्षिक शोध के लिए, पहल तथा नेतृत्व प्रदान करेगा। स्वतंत्र भारत में सामाजिक बदलाव की पहल करने में शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए, सामाजिक वैज्ञानिक इसे अनदेखा नहीं कर सकते थे तथा न ही शिक्षा को कम आंक सकते थे। इसलिए, केंद्र को सामाजिक विज्ञान के संकाय में स्थित किया गया। विश्वविद्यालय ने भी केंद्र का नाम प्रख्यात शिक्षाविद, स्वतंत्रा सेनानी तथा आगे चल कर भारत के राष्ट्रपति, डॉ। ज़ाकिर हुसैन के नाम पर रखकर एक अपवाद बनाया।

केंद्र ने अपने शोध कार्यक्रम की पहल 1972 से तथा एम.फिल/पीएचडी शिक्षण कार्यक्रम की जुलाई 1974 में, छः अध्यापक सदस्यों जो की दो अर्थशास्त्री, एक इतिहासकार, एक के साथ समाजशास्त्री तथा दो दर्शनशास्त्री थे, के साथ की। एम.फिल कार्यक्रम को शैक्षिक अध्ययन में मिलाने के लिए, बहुत से मुद्दे शामिल थे। पहला, मौजूदा ‘शिक्षा’ की अवधारणा में से इसका प्रस्थान तथा सामाजिक विज्ञान के तहत एक व्यापक आधार की परिभाषा प्रदान करना। दूसरा, छात्र/छात्राओं को, उनकी जड़ों को सामाजिक विजयन के अंतर्गत रखते हुए, शैक्षिक शोध में एक बहुविषयक प्रशिक्षण का दिया जाना था। इस प्रकार, कार्यक्रम को आधार से शुरुआत करनी थी तथा फिर भी मूल प्रशिक्षण से बहुत अधिक दूर नहीं जाना था।

छात्र/छात्राओं के कैरियर की संभावनाएं भी एक महत्वपूर्ण विचार था। इन मुद्दों को ध्यान में रखते हुए, संकाय के योग्यता के अनुसार, एम.फिल कार्यक्रम, समाज शास्त्र, इतिहास, दर्शन शास्त्र तथा अर्थशास्त्र नाम से, चार विशिष्टीकरण प्रस्तुत करते हैं। हांलांकि, इतिहास, अर्थशास्त्र, समाज शास्त्र तथा दर्शन शास्त्र की पृष्ठिका के छात्र/छात्राओं के प्रवेश के दौरान, जिनके पास शिक्षा में, अन्य संबंधित सामाजिक विज्ञान तथा प्राकृतिक विज्ञान में प्रशिक्षण हैं, उन्हें भी स्वीकार किया गया था।